दिल्ली का पालिका बाजार (Palika Bazaar), जिसे अमेरिकन मार्केट के नाम से भी जाना जाता है. जहां 500 रुपए की चीज 200 रुपए में भी आपको मिल जाएगी. कई ब्रांडेड चीजें, जिनकी कीमत शोरूम में हजारों रुपये होगी, वो यहां कुछ सौ में आप खरीद सकते हैं. शॉपिंग के लिहाज से यह लाखों भारतीयों का पसंदीदा मार्केट है. यही वजह है कि देश के अन्य हिस्सों से जो भी दिल्ली आता है, वो एक बार चांदनी चौक या पालिका मार्केट जरूर जाना चाहता है. यहां पर आप विदेशियों को भी खरीदारी करते देख सकते हैं. लेकिन कभी आपने सोचा कि पालिका बाजार को बसाया किसने? इसका मालिक कौन है? यहां की दुकानों का किराया कौन वसूलता है? आइए जानते हैं इस इंट्रेस्टिंग फैक्ट के बारे में…
पालिका मार्केट कनॉट प्लेस (Connaught Place) के इनर सर्किल और आउटर सर्किल के बीच जमीन के नीचे बसाया गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1975 में इमरजेंसी लगने के बाद कांग्रेस नेता संजय गांधी मन में इसे बनाने का आइडिया आया था. हालांकि, उस वक्त कनॉट प्लेस, जनपथ, मोहन सिंह प्लेस, शंकर मार्केट, सुपर बाजार पहले से ही थे, इसलिए कुछ लोग नाखुश भी थे. लेकिन जब ये खुला तो लोगों को खूब पसंद आया. 1978 के अंत में एक साल के अंदर इसका काम पूरा हुआ.
महंगी चीजें बेहद सस्ते दामों पर
बाहर से सामान लाकर बेचे जाने लगे. महंगी चीजें बेहद सस्ते दामों पर लोगों को उपलब्ध थीं. यही वजह है कि एक वक्त यहां अंदर जाने के लिए लाइन लगा करती थी. आज भी यहां कॉटन और सिल्क साड़ी का बेहतरीन स्टॉक आपको मिल जाएगा. एक्सेसरीज के मामले में यह नंबर 1 मार्केट है. हैंडबैग लेना हो या सर्दी की शॉपिंग करनी हो, हर चीज यहां उपलब्ध है और वह भी आपके बजट में. यही वजह है दिल्ली के लोग यहां जाना पसंद करते हैं.
4.3 एकड़ भूमि पर इसका निर्माण
इसे बनाने का काम नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (NDMC) को सौंपा गया. 34 साल पुराने थिएटर कम्युनिकेशंस बिल्डिंग को ध्वस्त करके 4.3 एकड़ भूमि पर इसका निर्माण शुरू हुआ. तब 2 लाख रुपये की लागत आई थी. तब यह देश का एकमात्र भूमिगत शॉपिंग मार्केट था. उस वक्त इसमें 306 दुकानें बनाई गई थीं. अंदर न आए इसके लिए खास सिस्टम लगाया गया था.
तो जानिए कौन है मालिक…
आज भी एनडीएमसी इनका संचालन करती है. वही यहां की दुकानों का किराया वसूलती है. एनडीएमसी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, पालिका बाजार में पहले से टेंडर निकाले गए हैं और दुकानें एलॉट की जा चुकी हैं. जिनका एक तय वक्त में नवीनीकरण होता है. अगर कोई दुकानदार वो नवीनीकरण कराने से चूक जाता है, तो दुकान का टेंडर निकाला जाता है. 10 हजार प्रति मीटर से लेकर 1 लाख प्रति वर्गमीटर के हिसाब से इसका टेंडर निकलता है. कई बार बोली करोड़ों रुपये तक पहुंच जाती है. खास बात, अब लाइसेंस नहीं दिए जाते. बहुत सारे लोगों ने यहां की दुकानों को किराये पर दे रखा है और हर महीने मोटा पैसा कमा रहे हैं.
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FIRST PUBLISHED : February 10, 2024, 08:43 IST